यह वह महिमामय स्थल है, जिसे लगभग ३० वर्ष (४२ से ७१) तक परम पूज्य गुरुदेव एवं वंदनीया माताजी की जीवन साधना का सतत सान्निध्य प्राप्त हुआ । मासिक अखण्ड ज्योति का प्रकाशन आगरा से प्रारंभ हुआ और इस स्थान पर पहुँचकर पनपता चला गया । हाथ से बने कागज पर छोटे ट्रेडिल मशीन द्वारा यहीं पर अखण्ड ज्योति पत्रिका छापी जाती थी ।
यहीं से देव परिवार के गठन का शुभारंभ हुआ । व्यक्तिगत पत्रों द्वारा जन-जन के अंतस्तल को स्पर्श करते हुए एक महान स्थापना का बीजारोपड़ संभव हो सका । अगणित दुःखी, तनावग्रस्त व्यक्तियों ने नये प्राण-नई ऊर्जा पायी । परम वंदनीया माताजी के हाथों का भोजन-प्रसाद की याद आते ही आध्यात्मिक तृप्ति मिलती है । अब तो सब कुछ बदल गया । पूरी बिल्डिंग को खरीदकर नया आकार दे दिया गया है । बस पूज्यवर के लेखन और साधना वाले कक्षों को यथावत रखा गया है । इतने छोटे से स्थान में ही ३० वर्षों तक प्रचण्ड साधना चली । २४-२४ लाख के चौबीस महापुरश्चरणों का अधिकांश भाग यहीं पूरा हुआ । अखण्ड ज्योति एवं युग निर्माण योजना पत्रिकाओं का लेखन-संपादन यहीं से होता था । पत्राचार एवं परामर्श का क्रम कभी रुका नहीं । साधकों की संख्या बढ़ी । देखते-देखते विराट् गायत्री परिवार खड़ा हो गया ।
प्रातः 2 बजे उठकर दैनिक साधना के पश्चात लेखनी साधना में तन्मय हो जाना पूज्यवर का स्वभाव था । जब तक एक दिन की लेखन-सामग्री तैयार नहीं हो जाती थी, वे जल ग्रहण नहीं करते थे । साधना फलीभूत हुई । उपनिषद, पुराण, दर्शन, गायत्री महाविज्ञान सदृश प्रकाशन सर्वसुलभ हुआ । अखण्ड ज्योति संस्थान के कण-कण में परम पूज्य गुरुदेव एवं परम वंदनीया माताजी की संव्याप्त चेतना आज भी श्रद्धालुजन अनुभव करते है । युगान्तकारी समग्र चिंतन का वाङ्मय देखें, तो हर बात अक्षरशः सत्य दिखलाई पड़ेगी ।
यहीं से देव परिवार के गठन का शुभारंभ हुआ । व्यक्तिगत पत्रों द्वारा जन-जन के अंतस्तल को स्पर्श करते हुए एक महान स्थापना का बीजारोपड़ संभव हो सका । अगणित दुःखी, तनावग्रस्त व्यक्तियों ने नये प्राण-नई ऊर्जा पायी । परम वंदनीया माताजी के हाथों का भोजन-प्रसाद की याद आते ही आध्यात्मिक तृप्ति मिलती है । अब तो सब कुछ बदल गया । पूरी बिल्डिंग को खरीदकर नया आकार दे दिया गया है । बस पूज्यवर के लेखन और साधना वाले कक्षों को यथावत रखा गया है । इतने छोटे से स्थान में ही ३० वर्षों तक प्रचण्ड साधना चली । २४-२४ लाख के चौबीस महापुरश्चरणों का अधिकांश भाग यहीं पूरा हुआ । अखण्ड ज्योति एवं युग निर्माण योजना पत्रिकाओं का लेखन-संपादन यहीं से होता था । पत्राचार एवं परामर्श का क्रम कभी रुका नहीं । साधकों की संख्या बढ़ी । देखते-देखते विराट् गायत्री परिवार खड़ा हो गया ।
प्रातः 2 बजे उठकर दैनिक साधना के पश्चात लेखनी साधना में तन्मय हो जाना पूज्यवर का स्वभाव था । जब तक एक दिन की लेखन-सामग्री तैयार नहीं हो जाती थी, वे जल ग्रहण नहीं करते थे । साधना फलीभूत हुई । उपनिषद, पुराण, दर्शन, गायत्री महाविज्ञान सदृश प्रकाशन सर्वसुलभ हुआ । अखण्ड ज्योति संस्थान के कण-कण में परम पूज्य गुरुदेव एवं परम वंदनीया माताजी की संव्याप्त चेतना आज भी श्रद्धालुजन अनुभव करते है । युगान्तकारी समग्र चिंतन का वाङ्मय देखें, तो हर बात अक्षरशः सत्य दिखलाई पड़ेगी ।